Monday, March 7, 2016

बड़ा बेशरम हूँ मैं (कहानी)

प्रिय आरती!
मैं कुशल हूँ, तुम्हारे कुशलता की कामना है।इधर स्त्री दिवस आ रहा है इधर पता नहीं क्यों तुम्हारी याद आ गई। हां, कुछ गलतफहमियां भी होंगी ही तुम्हें, मुझे लेकर। सोचा कि आज माफी मांग लूं।
        मुझे याद है वर्ष तेरह के गर्मियों वाले दिन थे वो, जब तुम हमारे कोचिंग में आई थी बी ए के बाद बैंकिंग की तैयारी करने। शायद वो चौथा या पांचवा दिन रहा होगा तुम्हारा, जिस दिन तुमने मुझसे कहा था कि - सर कोचिंग के बाहर एक लड़का सीटी मार रहा है।
मैंने तुम्हें 'अवाइड' करने की सलाह दी थी। तीन दिन बाद तुमने फिर कहा था मुझसे कि - सर कुछ लड़के गाना गा रहे थे मेरे आने पर कि - तुम जो यूं बल खा के चलती हो... टाइप।
मैंने तुम्हें डांट दिया था कि - चुप रहो! दुबारा इस टाॅपिक पर बात मत करना। मैं कोचिंग के बाहर के मामले नहीं देखता।
            पुष्पा ने मुझे बताया था कि तुम क्लास में रो रही थी। और यह भी कहा था कि - असित सर तो बड़े बेशरम हैं। मैंने अनसुना कर दिया और भूल इस घटना को। तुम कटने सी लगी थी मुझसे, मैं महसूस कर रहा था। लेकिन मैंने अपनी ओर से कोई पहल नहीं की थी। हां, तभी पता चला कि तुमने दारोगा का फार्म भरा है और कोचिंग की सभी लड़कियों से ज्यादा मेहनत कर रही हो। सामान्य हिन्दी में भी तुम कुछ कमियों के बावजूद अच्छी थी।फिर तुम्हारा कोर्स खत्म हो गया। तुम कोचिंग से चली गई और मैं दूसरे 'आरत-आरतियों' में लग गया।
         शायद छह महीने बाद तुम फिर कोचिंग आई थी एक दिन।खाकी रंग की पैंट और गुलाबी समीज पहन कर। लेकिन तब मैं कोचिंग छोड़ चुका था (समयाभाव के कारण)। शायद कोचिंग से थोड़ी दूर रास्ते में खड़े दो - तीन लडकों ने हमेशा की तरह सीटियां बजाईं थी....। इस बार तुम एक पल के लिए रुकी थी, लाल चमड़े का बेल्ट निकाला था और अगले ही पल सीटियां बजाने वाले होंठ बचाओ बचाओ चिल्ला रहे थे। और तीन मिनट बाद उन तीनों को भागते हुए देखा था लोगों ने।
फिर तुम कोचिंग में आई और तुमने वाचस्पति सर से कहा था कि - मुझे कोचिंग की सभी लडकियों की काॅमन क्लास चाहिए।
उन्होंने अनुमति दे भी दी। और उस दिन पूरी लड़कियों में जो जोश भरा तुमने, यह उसी की देन है कि आज उस कोचिंग के बाहर सीटी बजाने वाले खड़े नहीं होते। लडकियां बेझिझक आती जाती हैं। और सुना है मैंने कि आखरी बैच शाम के छह बजे खत्म होता है। तुमने वह कर दिखाया जो मैं नहीं कर सका था।
           यह तो थी तुम्हारी कहानी, अब मेरी कहानी सुनो- जब तुमने मुझसे कहा था कि - सर एक लड़का सीटी मार रहा है। तो मैंने तुम्हारे चेहरे पर खौफ़ देखा था.... कोचिंग की सभी लडकियों के चेहरे पर एक अनजाना डर महसूस किया था मैंने। मुझे लगा कि तुम्हें इन सीटियों से नहीं इस खौफ़ से बचाना है मुझे। इसलिए मैंने डांटा था तुम्हें, ताकि तुम विरोध कर सको। तुम थोड़ी सी ज्यादा कमजोर थी तब, इसलिए मैंने वाचस्पति सर से कहा था कि इसे दारोगा का फार्म भरवाइए।
और जैसे ही तुम्हें वर्दी की ताकत मिली तुम उस खौफ़ से बाहर हो गई। और उस खौफ़ से बाहर निकलने की देर थी, कि तुम सीटियों और फब्तियों की खौफ़ से भी बाहर निकल आई। यही नहीं, कोचिंग की वह सभी लड़कियां भी तुम्हारे इस कदम से उस खौफ़ से बाहर निकल आईं, जिस खौफ़ को उस दिन मैंने उनके चेहरे पर देखा था।
मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता था। उस लड़के को डांट कर भगा दिया होता यही न! लेकिन जिस बैंक में तुम क्लर्क होकर जाती वहां बजने वाली सीटियों को मैं कैसे चुप कराता? बनारस दिल्ली इलाहाबाद पटना हर जगह का यही हाल है मेरी बच्ची! मैं कहां कहां और किस किस आरती की मदद करता?
इसीलिए मैंने तुम्हें पढा - समझा, और तुम्हारे भीतर खुद ही सामना करने की यह आग जला दी। जिस समय तुम कामन रुम में अपनी गजब की हिम्मत से लड़कियों में जोश भर रही थी, उसी समय वाचस्पति सर ने बाहर वाले कमरे से (जिसमें घड़ी है) फोन किया था मुझे। और कहा था कि - मान गए भाई! आपने जैसा कहा था वैसा ही हो रहा है।
        आरती! मैं कत्तई यह नहीं कह रहा कि देश की सभी लड़कियां दारोगा हो जाएं। लडकों को देखते ही चाकू निकाल लें। हिंसा करें। नहीं! मैं कभी भी पितृसत्ता के 'खिलाफ' मातृसत्ता का समर्थक नहीं। मैं बस यह कह रहा हूँ कि तुम खुद जहां हो जिस हाल में हो वहीं अन्याय का विरोध करो। याद रखना जिस दिन बनारस दिल्ली पटना इलाहाबाद में बजने वाली सीटियों के खिलाफ कोई एक भी चूड़ियों वाली कलाई खड़ी हो जाएगी उसी दिन से सीटियां बंद। किसी असित सर के सहयोग की कोई जरूरत ही नहीं। तुम खुद समर्थ बनो। बहुत होगा तो दो चार खरोंचें आएंगी तुम्हें भी, एक दो थप्पड़ लग जाएंगे तुम्हें भी। लेकिन इन सीटियों के खौफ़ से, साड़ी के फंदे में झूलने से बेहतर है एक दो थप्पड़ खा लेना।
           अच्छा! छोड़ो यह सब। हां, तुम्हें पढ़ाने में हो सकता है मैंने एक दो थप्पड़ मार दिए हों, या कुछ कटु वाक्य बोलें हों.... तो माफ कर देना मुझे।
और हां, आखिरी बात! तुम्हें यहीं रुकना नहीं है। मैं तुम्हें आई पी एस देखना चाहता हूं। फार्म आते ही डाल देना। और अगर कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आओगी यहां, तो मैं ही पढाऊंगा तुम्हें फिर। लेकिन फिर पीटूंगा भी तुम्हें... फिर कटु वाक्य भी बोलूंगा तुम्हें... और फिर माफी भी मांग लूंगा तुमसे। क्या कहा था पुष्पा से तुमने कि मैं बड़ा बेशरम हूँ न! हां, यही हूँ! हा हा हा।
खुश रहो मेरी बच्ची।
असित कुमार मिश्र
बलिया

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