Tuesday, May 3, 2016

खुला पत्र मुख्यमंत्री जी के नाम

माननीय मुख्यमंत्री जी
(उत्तर प्रदेश सरकार)
समाचार पत्रों से पता चला कि आप कल मेरे जिले बलिया में आए थे। हार्दिक स्वागत आपका। यह भी पता चला कि आपने एक विश्वविद्यालय प्रदान किया है हमें। हम सभी के लिए गौरव और अभिमान का विषय है यह।
आपको ज्ञात होगा बहुत पहले स्व0 इन्दिरा गांधी भी हमें एक विश्वविद्यालय दे गईं थीं जिसका शिलालेख आज भी बलत्कृत और अपमानित बलिया के गौरव में श्री वृद्धि कर रहा है।
थोड़ा साफ साफ कहूँ तो उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने में जो योगदान आपकी समाजवादी सरकार का है वह किसी भी अन्य सरकार को नहीं दिया जा सकता।
जैसे कि प्राथमिक शिक्षा की बात करुं तो 72825 शिक्षकों की भर्ती आपके आते ही शुरू हुई थी। जिसमें मेरे जिले में मात्र 12 सीटें दी गई जबकि तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री श्री रामगोविंद चौधरी जी इसी जिले के थे।और लगभग पच्चीस हजार अध्यापकों की आवश्यकता आज भी है जिले में। आश्चर्य यह कि उन बारह सीटों पर चयनित नौ अभ्यर्थी फर्जी दस्तावेज लगाने के कारण बाहर हो गए और शेष तीन पर जांच जारी है...
जूनियर शिक्षा की बात करुं तो उर्दू टीईटी पास सभी छात्रों को नियुक्ति मिल गई। लेकिन वहीं संस्कृत और अंग्रेजी से टीईटी पास अभ्यर्थी आज भी दर दर भटक रहे हैं। सामान्यतया लोग इसे ही तुष्टिकरण की राजनीति कहते हैं (मैं नहीं कहता)। 29 हजार जूनियर शिक्षकों की भर्ती कोर्ट में है ही।
माध्यमिक शिक्षा की बात करुं तो 2011 में टीजीटी पीजीटी की भर्ती आई उसकी परीक्षा अब तक नहीं हुई। 2013 में जो परीक्षा हुई उसमें दर्जन भर सवाल गलत पूछे गए। अब सुनने में आ रहा है कि नई भर्ती भी आ रही है। मतलब पांच साल में आप माध्यमिक शिक्षा में एक भी अध्यापक नहीं दे सके।
उच्चतर शिक्षा की बात करुं तो वर्षों से लेक्चरर्स की भर्ती नहीं हुई। यूजीसी के रिपोर्ट के अनुसार राजकीय विश्वविद्यालयों में साठ प्रतिशत अध्यापकों के पद रिक्त हैं और यहां से निकले छात्र हाईस्कूल की योग्यता भी नहीं रखते।
ऐसे में आपका यह विश्वविद्यालय दे जाना पूर्णतः हमारे लिए हमारा मजाक बनाया जाना है। क्योंकि एक तो यह विश्वविद्यालय बनेगा नहीं अगर बन भी गया तो योग्य अध्यापकों की नियुक्ति होगी नहीं और उसमें से निकले छात्र हाईस्कूल की योग्यता भी नहीं रखेंगे (यूजीसी के अनुसार)।
शोध के नाम पर वर्ष 2009 के बाद राज्य विश्वविद्यालयों में एक भी नामांकन नहीं हुआ। ऐसे में आपका यह विश्वविद्यालयी झुनझुना कैसे पकड़ें हम, आप ही बताइए?
आपके पूरे कार्यकाल में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा आयोग अपने ही वजूद की लड़ाई लड़ता रहा। इतने बड़े प्रदेश से आपकी समाजवादी सरकार बोर्ड के दस सदस्यों का चयन नहीं कर पाई।
          आप कहते हैं कि युवाओं के दम पर सरकार बनाएंगे। मैं बताना चाहता हूं कि यह पत्र लिखते समय इलाहाबाद में छात्रों का एक समूह जो टीईटी पास है वो अपने समायोजन के लिए अनशन कर रहा है दूसरी ओर पीसीएस की परीक्षा में लगभग दस सवाल गलत पूछे गए हैं। प्रभावित छात्र कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। मैं जानना चाहता हूं कि वो कौन लोग हैं जो सवाल बनाने वाली कमेटी में हैं? उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती? क्या आयोगों में बैठे रक्तपिपासु लोग सौ सवाल भी ढंग का नहीं पूछ सकते?
हाँ! एक मामला ऐसा है श्रीमान जिसमें मैं आपके एकनिष्ठ और प्रतिज्ञ रहने का कायल हूँ। वो है शिक्षा मित्रों का समायोजन। आपकी सरकार पूरे पांच साल इसी एक मुद्दे में लगी रही। अन्य राजनीतिक दलों को सीख लेनी चाहिए इससे। हालांकि शिक्षामित्र प्रकरण कोर्ट में है लेकिन मैं दावे से कहता हूँ कि चाहे सुप्रीम कोर्ट भी इन्हें हटा दे लेकिन आप इनका समायोजन करके ही रहेंगे। नमन है आपकी इस प्रतिज्ञा को।
पुनः साफ साफ कहूंगा कि हमें नये कालेज से ज्यादा आवश्यकता इस बात की है कि जो कालेज हैं उनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और योग्य छात्र समाज में आएं। हमारे यहाँ से मात्र सौ किलोमीटर दूर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ तथा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय हैं ही। हमें विश्वविद्यालय नहीं अपने कालेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहिए। हर पांच किमी पर एक महाविद्यालय है जिले में। उन्हें यूजीसी के नियमानुसार संचालित किया जाए। उनमें योग्यतम शिक्षकों की नियुक्ति हो। पुस्तकालयों का आधुनिकीकरण हो। ऐसा नहीं कि मैं विरोध में हूँ विश्वविद्यालय के, लेकिन स्व0 चंद्रशेखर सिंह विश्वविद्यालय से एम ए (स्वर्ण पदक प्राप्त)होकर रिक्शा चलाने से बेहतर मैं अनपढ़ होकर ही रिक्शा चलाना पसंद करुंगा।
निवेदक -
समाजवाद में आस्था रखने वाला आपका एक मतदाता -
असित कुमार मिश्र
बलिया

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