Thursday, May 5, 2016

अप्रासंगिक विषय की प्रासंगिकता

इधर कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ के एक प्रशासनिक अधिकारी डाक्टर जगदीश सोनकर जी का फोटो दिख रहा है जिसमें वो किसी बीमार बच्चे की माँ से बात करते हुए जूते उसके बेड पर रखे हुए हैं। जो प्रथम दृष्टया ही आपत्तिजनक है।इस पर लगातार प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।कुछ लोग सहमत हैं कुछ लोग असहमत। मेरा मानना है कि असहमति दर्ज कराने के लिए असभ्य बन जाना उचित नहीं है। हालांकि छत्तीसगढ़ के किसी समाचार पत्र में यह फोटो प्रकाशित होने पर उन्होंने क्षमा मांग ली। इसलिए इस पर अब कुछ लिखना अप्रासंगिक है।
       अगर हम केन्द्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली 1964 का नियम 3(क) देखें तो साफ लिखा है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने सरकारी कर्तव्यों के निष्पादन में अशिष्ट व्यवहार नहीं करेगा। अथवा नियम 3(ग) महिलाओं के यौन उत्पीड़न के संबंध में अन्य कोई भी अशोभनीय आचरण नहीं करेगा।
लेकिन छोड़िए इन बड़ी बड़ी बातों को। आपको याद होगा जब श्री सचिन तेंदुलकर को संसद का सदस्य मनोनीत किया गया तो अखबारों में बड़ी बड़ी बधाईयाँ छपी थी। हर क्रिकेट प्रेमी खुश थे। मेरे साथ के क्रिकेटीय मित्र तो बहुत खुश। मैंने इसका विरोध किया तो मित्रों ने कहा था कि जीवन में एक चौका तो लगा नहीं आपसे। आप क्या जानिएगा तेंदुलकर मतलब क्या होता है?
मैं चुप हो गया।कुछ ही दिनों पहले उन्हीं अखबारों में खबर आई थी कि सचिन तेंदुलकर संसद में नहीं आते। सांसद के रुप में एकदम अयोग्य हो गए वगैरह वगैरह। निश्चित ही मैं सचिन तेंदुलकर के बारे में नहीं जानता। लेकिन जो जानते हैं वो क्यों नहीं बताते कि क्रिकेट का भगवान संसद में क्लीन बोल्ड कैसे हो गया? बहुत छोटा सा कारण है सचिन तेंदुलकर की रुचि उनकी अलग विशिष्टता।और उसके सापेक्ष गलत पद का चयन। जिस तेंदुलकर को किसी क्रिकेट क्लब का कोच बन कर पिच की सख्त धूप में पसीना बहाना था उन्हें जबरदस्ती वातानुकूलित कक्ष में अपराधियों के बीच साॅरी संसद में बैठा दिया गया। अब हम चाहते हैं कि सचिन जी रोज सुबह शाम संसद में आएं। याद रखिए कभी नहीं होगा ऐसा। बहुत हुआ तो दो चार सांसद बुढ़ौती में चौका छक्का मारना जरुर सीख जाएंगे। क्योंकि सचिन की विशेषता यही है कि वो क्रिकेट के भगवान हैं। उनका जन्म उनकी रुचि क्रिकेट के लिए है।
मान लीजिए अभी माननीय मुख्यमंत्री जी उठें और कहें कि असित बाबू आप पक्के समाजवादी हैं आपको बलिया में एस डी एम बना देता हूँ मैं। ठीक है लीजिए मैं बन गया एसडीएम। लेकिन करुंगा क्या मैं? मेरी रुचि तो मास्टरी में है। मैं अपना कार्यालय छोड़कर किसी इंटर कॉलेज डिग्री कालेज या प्रायमरी में बच्चों को पढाता पीटता हंसाता मिलूंगा। मुझे क्या मतलब की चौराहे पर अतिक्रमण किया गया है कि नहीं? मैं अपनी साइकिल कहीं से निकाल लूंगा। क्योंकि मेरा जीवन मेरी रुचि अध्यापन के लिए है।
अब आइए डाक्टर जगदीश सोनकर जी के बारे में बात करते हैं। मात्र एक चित्र अमर्यादित आया कि उन्हें क्षमा मांगनी पड़ी। लेकिन उनके वो चित्र सामने नहीं आए जिसमें वो प्रशासनिक अधिकारी होते हुए भी डाक्टर होने के कारण अपनी सेवाएं नि:शुल्क दे रहे हैं। यह सोचने की जरूरत ही नहीं समझी किसी ने कि एस डी एम से पहले वो डाक्टर हैं। उनकी रुचि उनका जीवन चिकित्सा के लिए है। अपनी योग्यता या घर परिवार के दबाव (बेटा मैं तुम्हें डी एम देखना चाहता हूं) से वो एसडीएम बन तो गए लेकिन हैं वो अभी भी एक डाक्टर ही।आज तो उन्होंने माफी मांग ली है लेकिन ध्यान रखिएगा कि कल फिर तहसील दिवस के दिन किसी फरियादी के गंदे दांत देखकर वो डांटेंगे। हो सकता है दो चार टूथपेस्ट भी दे दें अपने पैसे से। क्योंकि हैं वो डाक्टर ही। मेरा मानना है कि उन्हें इसी रुप में लिया जाए। पैसे और प्रतिष्ठा की बात होती तो एक डाक्टर भी कम नहीं कमाता।
     ऊपर मैंने जिस सिविल सेवा आचरण नियमावली की बात कही है। उसे उन्हें परवीक्षा काल में ही पढाया बताया समझाया गया होगा। ऐसा नहीं कि वो नहीं जानते दुनिया में एकलौता मैं ही जानकार हूँ। इसे सिविल सेवा परीक्षा देने वाला जागरूक हर परीक्षार्थी जानता है। फिर भी वो गलती कर गए।
         अपनी बात करुं तो पढाते समय बड़ी लड़कियों को भी बुरी तरह डांट बैठता हूँ। पीट भी देता हूँ। अब कल को महिला मोर्चा मेरा फोटो विडियो शूट कर ले और हाय असितवा हाय असितवा का अखंड कीर्तन फैल जाए तो पता है मैं क्या करुंगा? तुरंत कान पकड़ कर माफी मांग लूंगा और अगले दिन से वही सब फिर शुरू। परसों फिर हाय तौबा होगा तो फिर माफी फिर वही सब स्टार्ट।क्या लगता है कि मैं अध्यापक सेवा नियमावली नहीं जानता।जानता हूँ लेकिन मैं नियमावली से नहीं अंत: प्रेरणा से पढ़ाता हूँ।
कहने का मतलब यह है कि अगर आप भी किसी असित के मां बाप भाई बहन पापा-पापी हों तो याद रखिएगा यह अप्रासंगिक विषय पर प्रासंगिक लेख। और अपनी रुचि अपना दबाव अपनी इच्छा मत थोपिए बच्चों पर। उसे उसकी रुचि से आगे बढाइए। ऐसा न हो कि वो डाक्टर बनना चाहे और आपकी इच्छाएं उसे डीएम बना दें। उसकी रुचि अध्यापन में हो और आप उसे दरोगा बना दें तो वह अपने कैदियों से यमक अलंकार का उदाहरण ही पूछेगा घटना स्थल के बजाय।
          

       

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